तजुर्बा

सब कुछ खोकर ही तो ये तजुर्बा हुवा ,खुद अपना भी किसी का कँहा अपना हुवा
बदनाम तो सीता भी थी तो रकीब मेरा हाल पूछता है क्यों
कौन है ऐसा यंहा जिसका दामन कभी न मैला हुवा
फर्क बस इतना है , मै देख कर चुप रही और वो जानकर अंजा
उसके सामने मेरे मुक्ददर का जब फैसला हुवा
अरसे के बाद ठाना की जिंदगी जीना है आज से
पता चला की उम्रर गुजर गयी और ये हौसला हुवा