वजूद.......

लहू-लुहान है मेरा वजूद तेरे शहर मे कंही
छलकते आंसुओ का कोई हिसाब तो हो
धड़कने चलती है तो लोग समझते है की जिंदा हूँ
बिखरती साँसों पे भी काश थोड़ा ऐतबार तो हो
मुझसे मत पूछ मेरी कहानी क्या थी.…ए जिंदगी तुझको ,तुझपे इख्तियार तो हो
चल मै  हार जाऊं एक और सबब जिंदगी का
शर्त बस इतनी है मेरे हारने की कीमत तेरे लिए प्यार तो हो

दस्तूर

"बुनियाद ढ़य चूकी है बिखरना अभी भी बाकी है,ये जो थोड़ी सि जींदगी है तेरे साथ काफी है 
खुशियाँ हि तो बस प्यार का पैमाना नही  होती,आंसुओं मे भी  तो मोहब्बत झलक जाती है 
ज़माने से कह दो दस्तूर बदल डाले अब.......... हमसे टकराने की अब आंधियो की बारी  है …"

दुवा

"खुद अपने ही हाल पर हसने लगे है हम.… और लोग कहते है कि सिर्फ़  पीने से नशा होता है
क्यों जाते है लोग मंदिरो मे खुदा  को ढुंढने,,जंहा बस्ता है प्यार हर उस रिश्ते मे खुदा होता है
मुश्किलें काली रातों मे अमावश हो भले…ये भी सच है कि हर रात के बाद सुबह होता है
झोली फैला कर क्या मांगे खुदा से… .जब जब आता है तेरा नाम लब पर खुद वो दुवा होता   है "

दर्द

`मुझे देखकर  मेरे दर्द क अंदाजा ना हूवा  उन्को ....
पता नहीं…रौशनी कम थी वंहा या एक्टर हम कमाल के थे "