फलसफा...जिंदगी का !

बड़ी देर तक जलाया है अरमानों को मशालों की तरह
कैसे बदलते है तकदीरों को कोई बता तो दे
सहमा है मेरा दिल इस दुनिया के रंग से
ए वक़्त तेरे साथ चल सकु कुछ ऐसा फलसफा तो दे .....


पत्थर ...

बड़ी देर तक महफ़िल में मुस्कुराये है हम अब जो आये है तन्हाई में तो आंसू छलक गए
मासूम से दिल  को मारे एक जमाना सा हो गया ,आते ही ख्याल दिल पर कई शोले गुजर गए
अब हममे और ज़माने में फर्क कन्हा है
वो रखते है कांच का दिल और हम  पत्थर से बन गए